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मोटापा बढ़ा रहा है डायबिटीज़ और किडनी फेलियर का खतरा

ब्यूरो खबर

आगरा: मोटापा, डायबिटीज़ और क्रॉनिक किडनी डिजीज़ (CKD) तीन बड़ी हेल्थ प्रॉब्लम हैं, जो अक्सर एक साथ देखने को मिलती हैं। अलग-अलग भी ये गंभीर बीमारियाँ हैं, लेकिन जब ये मिलकर असर डालती हैं, तो बीमारी तेजी से बढ़ती है और इलाज को और मुश्किल बना देती है। इन तीनों के आपसी संबंध को समझना टाइम पर प्रिवेंशन, जल्द पहचान और सही इलाज के लिए बहुत ज़रूरी है।

मोटापा, टाइप-2 डायबिटीज़ और किडनी डिजीज़—दोनों को बढ़ावा देता है। शरीर में जमा अतिरिक्त फैट के कारण इंसुलिन रेज़िस्टेंस बढ़ता है, जिससे ब्लड शुगर स्तर बढ़ने लगता है और समय के साथ टाइप-2 डायबिटीज़ की स्थिति बन जाती है।

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, नोएडा के नेफ्रोलॉजी & किडनी ट्रांसप्लांट विभाग के सीनियर डायरेक्टर डॉ. विजय कुमार सिन्हा ने बताया कि “कई सालों तक माना जाता रहा कि मोटापे के कारण CKD होता है, लेकिन आमतौर पर इसे डायबिटीज़ से जोड़कर देखा गया। क्योंकि अधिकतर मोटे व्यक्तियों में डायबिटीज़ और CKD दोनों पाए जाते हैं। लेकिन हाल के अध्ययनों में यह स्पष्ट हुआ है कि मोटापा अपने आप में CKD का एक इंडिपेंडेंट रिस्क फैक्टर है, यानी बिना डायबिटीज़ के भी मोटापा CKD का कारण बन सकता है। मोटापे के लगातार बढ़ते मामलों के कारण आने वाले समय में CKD की संख्या भी बढ़ने की संभावना है। इसी संदर्भ में एक नया कॉन्सेप्ट सामने आया है ओबेसिटी रिलेटेड किड़नी डिजीज़ जो बताता है कि किस तरह मोटापा सीधे CKD को जन्म दे सकता है।“

मोटापा होने पर शरीर की ज़रूरतें बढ़ जाती हैं, जिसके चलते किडनी अपनी फ़िल्ट्रेशन क्षमता यानी GFR (Glomerular Filtration Rate) बढ़ा देती है। लंबे समय तक GFR का लगातार बढ़ा हुआ स्तर किडनी पर स्ट्रेस डालता है, जिससे आगे चलकर किडनी की फ़ंक्शनिंग कम होने लगती है। यह हाइपरफिल्ट्रेशन किडनी की शुरुआती थकान का संकेत है और आगे चलकर CKD की तरफ ले जाता है।

डॉ. विजय ने आगे बताया कि “डायबिटीज़ दुनिया भर में CKD का सबसे बड़ा कारण है। लंबे समय तक ब्लड शुगर हाई रहने से किडनी की छोटी रक्त नलिकाएँ डैमेज हो जाती हैं, जिससे शरीर का वेस्ट फ़िल्टर करने की क्षमता कम होने लगती है। इसे डायबेटिक नेफ्रोपैथी कहा जाता है। समय पर कंट्रोल न होने पर यह माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया से बढ़कर किडनी फेलियर तक पहुँच सकता है, जहाँ डायलिसिस या ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ती है। CKD सिर्फ मोटापा और डायबिटीज़ के कारण नहीं होता—बल्कि ये दोनों स्थितियाँ CKD के बाद और बिगड़ सकती हैं। किडनी की क्षमता कम होने पर इंसुलिन और दवाइयों का मेटाबॉलिज़्म प्रभावित होता है, जिससे डायबिटीज़ कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है। साथ ही, CKD में देखा जाने वाला फ्लूइड रिटेंशन और ब्लड प्रेशर का असंतुलन दिल की सेहत को और जोखिम में डाल सकता है, जो पहले ही मोटापा और डायबिटीज़ के साथ कमजोर होती है।“

मोटापा, डायबिटीज़ और CKD का संबंध बताता है कि इनका इलाज अलग-अलग करना पर्याप्त नहीं है। इनकी मैनेजमेंट के लिए लाइफ़स्टाइल बदलावों, नियमित मॉनिटरिंग और कोऑर्डिनेटेड मेडिकल केयर के साथ एक मल्टी-डिसिप्लिनरी स्ट्रैटेजी की ज़रूरत होती है।

जिन लोगों में इन स्थितियों का जोखिम है, उन्हें अपने डॉक्टर से मिलकर एक पर्सनलाइज़्ड प्लान बनाना चाहिए ताकि बीमारी को रोका जा सके, समय रहते पहचाना जा सके और लंबे समय तक कंट्रोल में रखा जा सके। प्रोएक्टीव केयर से किडनी की सुरक्षा और जीवन की गुणवत्ता—दोनों बेहतर हो सकती हैं।

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