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अग्रेजों के कोड़े खाये पर कभी शीश नहीं झुकाया , ऐसे थे स्वतंत्रता सेनानी स्व,श्री बद्री प्रसाद दिव्य, स्वतंत्रता दिवस पर किया याद

आगरा, यूपीएसआईडीसी रोड सिकंदरा आगरा स्थित दिव्य वाटिका में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया, वाटिका के दिव्य रत्न श्री दिलीप सिंह सेंगर जी ने ध्वजा रोहन किया ,इस अवसर पर दिव्य वाटिका समिति के अध्यक्ष अखिलेश जैसवाल,सुमित राज,अजय कुमार शर्मा,धर्मेंद्र तायल,संजीव अग्रवाल,रणधीर सिंह,अंकित गुप्ता,राजीव आनंद के एल गुप्ता, अखिलेश कुलश्रेष्ठ,के अलावा अनेकों गणमान्य लोग उपस्थित थे कई वक्ताओं ने ,स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों  की गाथा सुनाई, जादूगर अखिलेश जैसवाल ने अपने बाबा स्वतंत्रता सेनानी स्व,श्री बद्री प्रसाद दिव्य का एक स्मरण सुनाया तो लोग भावुक हो गए कि कितने कष्टों व कुर्बानियों के बाद हमारा देश आजाद हुआ। 

जादूगर अखिलेश ने बताया कि उनके बाबा की एक छोटी दुकान थी जिसमे वह बूरा बतासे,गुड खांड,गुड सेव के लड्डू आदि बना कर बेचते थे, यह बात 1930 के आस पास की है,तब उस थाने के वाय सराय मिस्टर विनाहिल थे  जब भी अपने घोड़े पे सवार होके बाजार में जाते तो दुकानदारों को कोड़ों से पीटते जाते थे तब सब दुकान वाले हमेशा उसके आते ही हाथ जोड़ शीश नवा कर खड़े हो जाते थे,हमारे बाबा की दुकान में हमेशा काम चलता रहता था,उन्होंने कभी उसे शीश नही झुकाया, इसी बात से वह नाराज रहता और जब भी उधर आता तो दस बीस कोड़े मार कर अपने घोड़े को गुड सेव के आठ दस लड्डू खिला कर वहां से जाता था,लेकिन डर के मारे कोई कुछ नही कहता धीरे धीरे इनके आतंक के खिलाफ लोगों को जोड़ना शुरू किया , यह बात किसी ने वाय सराय के पास पहुंचा दी कि बद्री और सुनहरी तुम्हारे खिलाफ लोगों को भड़का रहे हैं, तो तुरंत गिरफ्तार कर दोनों को थाने ले जाया गया , और बहुत सी यातनाएं दीं,तीन तीन दिन खाने को भी नहीं दिया, अंत में दस दस रुपए जुर्माना लेकर छोड़ दिया,एक दिन बाबा दुकान पर गुड सेव के लड्डू बना रहे थे कि पता नहीं कब दो छिपकली गुड की चासनी में गिर गई,उसमे सेब मिला कर जब लड्डू बना रहे थे तो वह छिपकली दोनों एक जगह लिपटी हुई एक लड्डू बनाते हुए दिख गई ,और वह लड्डू बन भी गया था,तो बाबा उस सारे लड्डुओं को फेंकने की तैयारी कर ही रहे थे तभी वह वाय सराय आ गया और आते ही अपने हाथों दो तीन लड्डू उठा कर अपने घोड़े को खिला दिया बाबा मना करते रह गए अरे साहब इन्हें मत खिलाओ , मना करने पर चार पांच कोड़े बाबा की पीठ पर बरसा दिए और वहां से चल दिया, बाबा को बहुत दुख हुआ कि इस बेचारे निरीह  घोड़े का क्या कसूर में तो मना करता रह गया पता नही घोड़े का क्या होगा, लगभग एक घंटे बाद घोड़े को छिपकली के जहर का असर होने लगा और वह जोर जोर से कूदने लगा मुंह से झाग आने लगे इधर से उधर दौड़ता , वाय सराय उस घोड़े पर बैठा हुआ था ,तभी घोड़े जोर से छटपटा कर जमीन पर  जहर की गर्मी से बहुत उछल कूद  कर धड़ाम से गिरा और उस
के साथ ही वायसराय भी गिर गया घोड़ा तो  लगभग  दस बारह घंटे तड़पने के बाद मर गया पर उस वाय सराय की रीड की हड्डी के साथ एक पैर का घुटना भी टूट गया,फिर कहां उसका इलाज हुआ वह बचा या नहीं किसी को पता नहीं चला,ऐसे ही अंग्रेजों के जुल्म के अनेकों किस्से उन्होंने बताए ,आज 16 अगस्त हमारे महान स्वतंत्रता सेनानी बाबा स्व बद्री प्रसाद दिव्य की 35वीं पुण्य तिथि है,हम सभी उन्हें सादर नमन करते है। 

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