Home Gallery Join Us E-Paper About Contact Us
image

वर या वधु के चयन के समय सिर्फ मंगलीक दोष न देखे ,जानते है क्यों देखे कालशर्प योग भी-वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल 

मंगलीक दोष के समान ही कालसर्प योग भी वर एवं कन्या में से किसी एक की जन्मकुण्डली में होने पर हानिकारक माना गया है। इस लिए वर और वधु दोनों की कुण्डलियों में कालसर्प योग की स्थिति का भलीभाँति मिलान कर लेना चाहिए।

समस्त ग्रहों की स्पष्ट स्थिति देख लेनी चाहिए कि राहु-केतु के मध्य आने वाले सातों ग्रह अन्त क्षेत्र में आते हैं।

कौनसा कालशर्प योग ज्यादा कष्टदायक होगा - द्वितीय, अष्टम और द्वादश भाव में बैठकर राहु का कालसर्प योग बनाना सर्वाधिक कष्टकारी कहा गया है। इसके परिणाम अधिक दुःखदायी होते हैं। 

कालशर्प दोष जातक को कब कष्ट देता है  -कालसर्प योग का प्रभाव जीवन पर्यन्त रहता है, किन्तु राहु-केतु की महादशा अन्तर्दशा अधिक दुःखदायी होती है। यदि लग्न से सप्तम भाव तक राहु-केतु धुरी के मध्य समस्त ग्रह बैठे हों, तो जातक को जीवन के सुरुवाती दोर में अधिक असंतोष रहता है और यदि सप्तम से लग्न भाव तक राहु-केतु धुरी के मध्य समस्त ग्रह बैठे हों, तो जातक के जीवन के उत्तरार्ध दुःखों में व्यतीत होता है। जीवन में संघर्ष बना रहता है। भय एवं असुरक्षा की हीन भावना घर कर जाती है। सिर पर सदैव ही डर का साया मंडराता रहता है।
अगर विवाह हो चूका है कालशर्प के जातक से तो क्या उपाय करे -पक्षी और जल चरो को आते की गोली रोजाना खिलाये।  घर में सबसे वृद्ध व्यक्ति की सेवा खुद करे। शिवजी को रोज मोर पंख से हवा करे और हवा करते समय ॐ नमः शिवाय का जप करते रहे।
 
 

  • TAGS
Post Views: 376

यह भी पढ़ें

Breaking News!!