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यूजीसी नेट परीक्षा रद्द ,सीबीआई करेगी जांच

 ब्यूरो रिपोर्ट आरिफ खान बाबा

आगरा- 18 जून को देशभर के यूजीसी नेट 317 शहरों में 1205 परीक्षा केंद्र पर आयोजित किया गया था। जिसमें लगभग 11 लाख से अधिक छात्रों ने हिस्सा लिया था। 18 जून को देशभर में आयोजित की गई यूजीसी नेट परीक्षा करने वाली संस्था नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ( एनटीए )ने इसके सफलतापूर्वक संपन्न होने का दावा किया था। यूजीसी नेट परीक्षा में गड़बड़ी होने पर शिक्षा मंत्रालय ने पूरी परीक्षा की रद्द कर दी और जल्द ही नई तारीख का ऐलान भी कर दिया। और जांच सीबीआई को सौंप दी गई।

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर जब परीक्षा में धांधली हो ही रही है तो फिर नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए)के गठन का उचित क्या है? शिक्षा मंत्रालय ने यूजीसी नेट को रद्द करने का फैसला गृह मंत्रालय से मिले उस इनपुट के आधार पर लिया जिसमें पेपर लीक होने समेत बड़े स्तर पर गड़बड़ी की सूचना मिली थी। सूत्र बताते हैं कि गृह मंत्रालय को भी परीक्षा में गड़बड़ी की यह सूचना साइबर क्राइम मिनट से मिली थी। इसलिए प्राथमिक स्तर पर गड़बड़ी प्रमाणित होने के बाद यह पूरा फैसला लिया गया है।

मंत्रालय का यह भी कहना है की परीक्षा में गड़बड़ी की शिकायत  विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी )को भी मिली थी। जबकि गृह मंत्रालय को भी परीक्षा में गड़बड़ी की सूचना साइबर क्राइम यूनिट से मिली थी। यूजीसी नेट का जुम्मा भी नीट यूजी परीक्षा आयोजित कराने वाली एनडीए के पास ही था।   देखने की बात यह है की नीट  में गड़बड़ी का मामला अभी निपटा भी नहीं था ,कि यूजीसी नेट परीक्षा में धांधली का एक और नया मामला सामने आ गया, जिसकी आनन फानन में शिक्षा मंत्रालय ने यूजीसी नेट की लाज बचाने के लिए पूरी परीक्षा की रद्द कर दी है। परीक्षा में धांधली होना यह कोई खेद का विषय नहीं है लेकिन हर दिन इसका बदलता हुआ स्वरूप गरीब मेहनती, मेधावी छात्रों के लिए चिंता का विषय जरूर है। जिनका शासन प्रशासन से कोई लेना-देना नहीं है। जब भी कोई पेपर लीक होता है परीक्षा रद्द हो जाती है तो सबसे ज्यादा आर्थिक मार इन्हीं कमजोर छात्रों पर पड़ती है वही सर्वाधिक मानसिक पीड़ा ऐसे ही छात्रों को भुगतनी पड़ती है क्योंकि इस पूरे घटनाक्रम में उनकी अपनी सुनहरे सपने प्रभावित होते हैं।

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