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चौधरी बाबूलाल को एमपी/ एमएलए कोर्ट ने किया बरी, पनवारी काण्ड में 3 दशक से अधिक समय बीतने के बाद आया फैसला

यह 22 जून 1990 की घटना है। जब सिकंदरा के गांव पनवारी में दलित चोखेलाल की बेटी की बारात की चढ़त रोकने की कोशिश पर बवाल हुआ। फायरिंग-मारपीट और दलितों के घरों में आगजनी ही नहीं पुलिस पर भी हमला हुआ। आरोप चौधरी बाबूलाल समेत अन्य पर लगा। प्रतिक्रिया स्वरूप शहर में जातीय संघर्ष हुआ। प्रशासन को १० दिन कर्फ्यू लगाना पड़ा था। पनवारी कांड आगरा का पहला ऐसा कांड था जिसमें सेना को मोर्चा संभालना पड़ गया। पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के पसीने छूट गए थे। 

जानें पूरा क्या था मामला

आगरा : दंगा भड़काने के आरोप में फंसे चौधरी बाबूलाल को राहत मिल गई है। विशेष न्यायाधीश एमपीएमएलए कोर्ट नीरज गौतम की सुनवाई में उन्हें बरी कर दिया गया है। केस में शामिल आरोपियों के खिलाफ साक्ष्यों के अभाव के चलते कोर्ट ने यह निर्णय गुरुवार को सुनाया है। इधर केस के मुख्य गवाल भरत सिंह कर्दम आगरा से बाहर हैं। वर्ष 1990 से चल रहे पनवारी कांड में मुख्य आरोपी विधायक चौधरी बाबूलाल को बनाया गया था। तभी से लगातार मामले की सुनवाई चल रही है। 

2006 में तय हुए आरोप
12 अप्रैल 2006 को तत्कालीन स्पेशल जज जनार्दन गोयल ने मुख्य अभियुक्त चौधरी बाबूलाल, बच्चू सिंह, रामवीर, बहादुर सिंह, रूप सिंह, देवी सिंह, बाबू सिंह, विक्रम सिंह, रघुनाथ सिंह, रामऔतार, शिवराम, भरत सिंह, श्यामवीर और सत्यवीर के खिलाफ आरोप तय किए थे। विचारण के दौरान दो अभियुक्तों की मृत्यु हो गई। पनवारी गांव जाट बाहुल्य है। बाबूलाल जाट समुदाय से आते हैं। पनवारी कांड जाटव और जाट समुदाय के बीच बारात चढ़ाने को लेकर हुआ था। इस पूरे कांड में दोनों समुदाय के बीच खूनी संघर्ष हुआ था। इस संबंध में विधायक चौधरी बाबूलाल से उनके मोबाइल फोन पर संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन संपर्क नहीं हो सका।
10 दिनों तक लगा था कर्फ्यू
पनवारी कांड आगरा का पहला ऐसा कांड था जिसमें सेना को मोर्चा संभालना पड़ गया। पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के पसीने छूट गए थे। दंगे में आगरा के अलावा आसपास के जिलों से जाट और जाटव समुदाय के लोग शामिल हो गए थे। दंगे में सबसे ज्यादा नुकसान जाटव समाज को हुआ था। दर्जनों लोगों की मौत हुईं। करीब 10 दिन तक आगरा में कर्फ्यू लगा रहा। सेना के आने के बाद ही मामला शांत हो सका था। डीएम व एसएसपी भी नहीं चढ़वा सके थे बारात ।

थाना सिकंदरा के गांव पनवारी के रहने वाले भरत सिंह कर्दम ने बताया कि 21 जून 1990 को उनकी बहन मुंद्रा की बारात आगरा के ग्वालियर रोड नगला पदमा से आनी थी, लेकिन जाट समाज के लोगों ने दलितों की बारात चढ़ाने का विरोध कर दिया। उस दौरान श्रम कल्याण मंत्री रहे रामजीलाल सुमन और जाटव समुदाय के प्रबुद्धजनों प्रशासनिक अधिकारियों को मामले से अवगत कराया। तत्कालीन जिलाधिकारी अमल कुमार वर्मा और एसएसपी कर्मवीर सिंह ने बारात चढ़वाने की जिम्मेदारी ली, लेकिन इससे पूर्व ही दंगा भड़क गया और जमकर बवाल हुआ।  फोटो इंटरनेट 

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