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बड़े रूढ़िवादी और परंपरा को व्यर्थ साबित कर देती है पंचलाइट की कहानी ,कलाकारों ने किया नाट्य रूपांतरण

Sunil Jain

पंचलाइट एक हिंदी कहानी है जिसके लेखक फणीश्वर नाथ रेणु हैं।यह कहानी ग्रामीण जीवन के साथ साथ आंचलिक जीवन की  सजीव झांकी प्रस्तुत करती है। इस कहानी का नाट्य रूपांतरण राजस्थान की लोकनाट्य शैली ढूँढाडी में किया गया है । यह कहानी उस समय की है जब गांव में बिजली नहीं हुआ करती थी लोग चिमनी और मिट्टी के तेल से जलने वाली लालटेन से गुजारा किया करते थे। उसी गांव में रहने वाला त्रिलोक नाम का एक युवक कमला नाम की एक युवती से प्रेम करता है। और उसे देख कर फिल्मी गाने गाता है यह सब कमला की मां को पसंद नहीं आता और वह उसकी शिकायत पंचायत से कर देती है।पंचायत उसका हुक्का पानी बंद कर उसे गांव से बहिष्कृत कर देती है।

गांव में रामनवमी का मेला लगता है सरपंच और गांव वाले पेट्रोमैक्स यानी पंचलाइट खरीद कर लाते हैं लेकिन समस्या यह उठाती है की पंचलाइट जलाएगा कौन ?क्योंकि गांव के किसी भी व्यक्ति को पंचलाइट जलाना नहीं आता था और इसी वजह से दूसरे टोले वाले इस बात का मजाक बनाते हैं।जैसे तैसे पंचों को पता लगता है कि त्रिलोक पंचलाइट जलाना जानता है।उसे गांव में वापस बुला लिया जाता है त्रिलोक के द्वारा पंचलाइट जलाने और गांव की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए पंचायत त्रिलोक पर लगे सारे प्रतिबंध हटा देती है और काकी भी उसे माफ कर देती है।
आवश्यकता बड़े से बड़े रूढ़िवादी और परंपरा को व्यर्थ साबित कर देती है जिस पर ये कहानी आधारित है।
इस नाटक का नाट्य रूपांतरण कैलाश सोनी ने किया है और निर्देशन कपिल कुमार के द्वारा किया गया है।

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