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सिन्दूर और दर्पण से करें माँ चंद्रघंटा का पूजन -डॉ सुमित्राजी 

दुर्गा-पूजामें प्रतिदिनका वैशिष्ट्य महत्व है और हर दिन एक देवी का है । नवरात्रि के 9  दिनों में मां दुर्गा के  ९ रूपों की पूजा होगी । 28  सितंबर: तृतीया  को मां चंद्रघंटा की पूजा होगी।   माँ के पूजन की विशेष सामग्री , तृतीयाको सिन्दूर और दर्पण से माँ का पूजन करे । 

कौनसी कथा पढ़े या सुने 
चंद्रघंटा माता की कथा का उल्लेख पुराणों में मिलता है । ये कथा उस समय की है जब देव लोक में असुरों का आतंक अधिक बढ़ गया तब देवी दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया। उस वक्त महिषासुर असुरों का स्वामी था। दुष्ट महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन पाना चाहता था। स्वर्गलोक पर अपना राजत्वा ज़माने की इच्छा को साकार करने हेतु वो हर प्रकार का प्रयाश करने लगा था।

जब देवताओ को उसकी ये इच्छा का पता लगा तो वो चिंतित होकर त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे। देवताओं के मुख से महिषासुर के अत्याचार को जानने के बाद तीनों अत्यंत क्रोधित हुए। यही पे एक रोचक घटना होती है। उसी वक्त त्रिदेवो के मुख से उत्पन्न ऊर्जा से देवी का अवतरण हुआ। इन देवी को भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। शिव जी ने अपना त्रिशूल दिया और देवो के देव ब्रह्मा ने अपना कमंडल दिया।  सभी देवताओं ने देवों को अस्त्र शास्त्र भेंट किया। जोर से बोलेंगे जय माता की।  मन में देवी के इस स्वरुप को नमन करे। 
सबसे आज्ञा पाकर देवी चंद्रघंटा महिमासुर के पास गई। माता का विशालकाय स्वरूप देखकर दैत्य महिषासुर को एक पल के लिए ऐसा लगता है की उसकी मृत्यु का समय आ गया है । महिषासुर एक पराक्रमी राक्षस था मृत्यु को सामने देख कर वो रण छोड़कर नहीं भगा और मां चंद्रघंटा पर हमला करता है । भयंकर युद्ध में महिषासुर  का अंत होता है।  माँ के प्रहार से और दैवी शक्तियों के आगे वो नहीं टिक पता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। 
बोलो सच्चे दरबार की जय। माता रानी की जय।  इस कथा को 28 सितम्बर को अवस्य पढ़े या सुने।

 सुमित्राजी 

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